Monday, October 15, 2012

जिन्दगी के सफर में.....!!!!

जिन्दगी के सफर में ऐसा मुकाम आया है,
जिन्दगी ने खोया ही है न कुछ पाया है। 

हैरान हैं फिजायें वक्त का  मंजर देख कर,
हैरान हैं हम हवाओं के बदले तेवर देख कर। 
 
ज़रूर होती है सुबह हर ढलती शाम की ,
गर हो न सुहानी तो फिर किस काम  की। 

जहाँ गूंजती थी हवाओं की मदमस्त सरगोशियाँ ,
क्यों सिसकती हैं फिजाओं  में ये  खामोशियाँ  .

अब तक  न उनका कोई इजहारे  पयाम आया है ,
 कमलेश 'जिन्दगी ने खोया ही है न कुछ पाया है।

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